वीर योद्धा तक्कवल बारी
वीर योद्धा तवक्कल बारी
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आप बेतिया राज बिहार से एक वीर सेनापति बारी योद्धा थे। आपका जन्म 19 अप्रैल 1162 ई को लक्ष्मीपुर बारी टोला,लक्षणौता चम्पारण ( बिहार) में हुआ था ।
तवक्कल बारी का नाम बिहार के बेतिया राज के इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। सन् 1202 का समय था, जब प्रतिभाशाली गोरखा सेना समस्त तराइयों पर अधिकार करती जा रही थी,उसी समय नेपाल स्थित पाल्या तनहुँ का राज घराना गोरखों से त्रस्त होकर,बिहार स्थित चम्पारण जिले के उत्तरी तराई भाग में आकर बस गए एवं समस्त पश्चिमोत्तर भाग पर राज करने लगे।
पाल्या तनहुँ के इन सेनाओं व राजाओ ने धारा प्रवाह में स्थानीय बेतिया राज के कुछ पश्चिमी भाग पर अधिकार कर लिया।
यह घटना बेतिया महाराज के लिए असहज सी हो गई थी,उन्होंने आल्पा के एक प्रमुख हाकिम थानु चौधरी को धन और मान सम्मान का लोभ लालच दिखाकर अपनी ऒर मिला लिया। फिर क्या था!अपनी तो पौबारा ही था। फ़िर उन्होंने फ़ौरन ही अपने शुरबीर एवम् श्रेष्ठ स्वामी भक्त बारी वीरो को युद्धार्थ उत्साहित किया।
रणभेरी की हुँकार एवम् नगाड़े की धौस सुनते ही रणवांकुरे बारी नवयुवको की धमनियों में बिजली सी दौड़ गई।
बारी कुल श्रेष्ठ "कुल भूषण शिरोमणि वीर योद्धा तवक्कल बारी" ने बुद्धि से काम लिया उस समय थानू चौधरी भी उनके साथ ही थे। धैर्य पूर्वक कार्य योजना बनाई।
"वीर योद्धा तवक्कल बारी" ने केला के थम्भो को कटवा कर "दरूआ बारी" नामक स्थान में शिविर रचना एव मोर्चाबंदी की और सभी शिविरो में, सैनिक की जगह "कदली खंभों" को ही सुला कर उजले कपड़ो से ढँक दिया।
स्वयं अपने सैनिको समेत अन्यत्र उसी वन में छिप गए। अचानक रात्रि में ही शत्रु दल ने उनके शिविर पर हमला कर दिया और गोले व गोलिया वर्षाने लगे, प्रातः होते होते जब शत्रु की गोलिया समाप्ति पर आ चुकी थी। ठीक उसी मौके पर "चतुर वीर योद्धा तवक्कल बारी" ने विपक्षी दलों पर छापा मारा।
क्षणिक प्रतिरोध के बाद ही शत्रु सेना के पैर उखड गए और वे पीठ दिखाकर भाग खड़े हुए। विजयश्री " वीर योद्धा तवक्कल बारी" के गले पड़ी।
फिर भी उन्होंने कुछ दूर तक शत्रु सेनाओ का पीछा भी किया और सेना को नदी के किनारे पाल्या तेंहू के सेनापति को धराशायी बनाया। यह लड़ाई चम्पारण के इतिहास में "त्रिवेणी लड़ाई" के नाम से प्रसिद्ध है।
जब वे विजयोल्लास में लौट ही रहे थे कि मार्ग में ही जटाशंकर मंदिर के पास एक छिपे हुए "गोरखा सैनिक" ने ५ मई १२०२ ई. को उन्हें गोली मार दी।
अभी वह छली सिपाही भाग भी नहीं पाया था कि पीछे से आये हुए उनके "छोटे बारी भाई" ने उसी क्षण उस दुष्ट को मार डाला, इस प्रकार भातृ ऋण से उऋण हुए। वह दिन सन् 1202 का "बैसाखी दिन शनिवार"था, उसी दिन निर्जला एकादशी भी थी।
उसी समय से तवक्कल बारी के वंशज बैसाखी एकादशी नहीं करते है। यह घटना दिन के 12 बजे घटी थी, तत्क्षण "वीर योद्धा तवक्कल बारी" के "अनुज" उनके शव को लेकर घोड़े पर चढ़कर बेतिया चल पड़े और संध्या होते होते करीब 60 मील की यात्रा तय कर अपने घर पहुच गए और शोक संतप्त परिवार सहित गम्भीर ह्रदय से वीर भाई "योद्धा तवक्कल बारी" का यथाविधि अंतिम संस्कार किया। इन्ही वीरोचित कार्यो से प्रसन्न होकर महाराज बेतिया ने"वीर शिरोमणि तवक्कल बारी" के वंशज को "बारी टोला लक्षनौता" में 125 वीघा जमीन देकर,उनके भरण पोषण के लिए जागीर स्वरुप दान दिया गया।
आज भी वीर योद्धा तवक्कल बारी के वंशज 25 से 30 घरो में विभक्त होकर अपने ग्राम "लक्षणौता बारी टोला" मे ही रहकर अपने स्वतन्त्रता की जिंदगी को बिता रहे है।
