वीर योद्धा स्वामी भक्ति कीरत बारी
वीर साहसी स्वामिभक्त कीरत बारी
वीर कीरत बारी मेवाड़ के निवासी थे। समय सन् 1536 ईसवी का है, महाराणा प्रताप के पिता महाराणा उदय सिंह के जीवन की रक्षा करने में जितना त्याग पन्नाधाय का है उससे कम त्याग कीरत का भी नहीं है। कीरत वारी को हिन्दू राष्ट्र का कीरत रक्षक कहा जा सकता है।
जब पन्नाधाय को पता चला कि निर्दयी बनवीर सिंह द्वारा राजकुमार उदय सिंह का कत्ल कर दिया जायेगा, उसने उन्हें राजमहल से बाहर भेजने की योजना बनाई। उदय सिंह को राजमहल से बाहर ले जाने और सुरक्षित जगह पहुँचाने का कार्य किसी विश्वासनीय विशिष्ट और बहादुर व्यक्ति को ही सौंपा जा सकता था। राजा बनवीर के सिपाही किले के चारो तरफ तैनात थे। राजकुमार उदय सिंह को किले से बाहर ले जाना कोई आसान कार्य न था। चारों तरफ से पहरा लगा था। इस सबके होते हुये भी पन्नाधाय ने 'कीरतबारी' को चुपके से बुलाया और अपनी योजना बताई और उन्हीं के माध्यम से राजकुमार राजकुमार को महल के बाहर भेजने में सफल हुई।
इतिहासकारों ने कीरत बारी का चित्रण गलत ढंग से किया है। प्रश्न यह उठता है कि क्या इतना बड़ा कार्य एक मामूली सा नौकर कर सकता है? कदापि नहीं, जिस हालत से उदय सिंह को राजमहल के बाहर ले जाना था, बड़े-बड़े के छक्के छूट जाते। इतने बड़े काम का नाम सुनकर ही लोगों के हाथ-पैर कांपने लगते, उसे सम्पन्न करने का कौन कहें। यह कार्य केवल 'कीरत बारी ही सम्पन्न कर सकता था क्योंकि वह एक बहादुर योद्धा थे। उन्हें अपनी तलवार पर नाज था फिर भी वह राजकुमार को खुले आम अकेले नहीं ले जा सकते थे पन्नाधाय और कीरत बारी दोनों ने युक्ति सोची। कीरत बारी ने पत्तल उठाने वाले का वेष बनाया ढेर सारी जूठी पत्तले इकट्ठा की और उन पत्तलों के बीच में राजकुमार को छिपाकर राजमहल के बाहर ले जाना ठीक समझा ताकि किसी को तनिक भी सन्देह न हो और लोग उसका पीछा न करे। अगर कीरत बारी दूरदर्शी, विश्वासनीय और बहादुर योद्धा न होते तो राजकुमा उदय सिंह को महल के बाहर न ले जा सकते थे।
ऐसा गुण एक ममूली से नौकर में नहीं पाये जा सकता हैं? उनकी उसकी बुद्धि इतनी प्रखर थी तभी इतनी बड़ी योजना बनाकर सफलता पूर्वक उसे क्रियान्वित कर सके। ऐसी हिम्मत किसी शुरवीर ही हो सकता है जो अपनी मौत को आमंत्रित करके राजकुमार को महल के बाहर ले जाने के विषय में सोच सकता है।
कीरत बारी जितने बहादुर थे उतने ही स्वामिभक्त और त्यागी भी थे, इसमें दो राय नहीं हो सकती। यदि वे स्वामिभक्त न होते तो वे पन्नाधाय की बात कभी न मानते या पन्नाधाय की योजना को बनबीर सिंह तक पहुंचा देते और उदय सिंह के साथ ही साथ पन्नाधाय का सफाया करवा कर राजा बनबीर सिंह से बहुत बड़ी जायदाद और सम्मान प्राप्त करते।
ऐसे वीर महापुरुष को हम नमन करते है।
